Salaar Review: पैसा वसूल है प्रभास की ‘सलार’, हर किरदार को मिला न्याय

Salaar Review: आज कल साउथ फिल्में देखने से पहले इस बात का कन्फ्यूजन रहता है कि क्या इस फिल्म में पूरी कहानी देखने को मिलेगी? या फिर कहानी खत्म होने के लिए 2 साल और इंतजार करना पड़ेगा. केजीएफ हो, पुष्पा हो या फिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा का जवाब हो ये फिल्में देखने के लिए हमें मेकर्स ने 2 सालों का इंतजार करवाया. यही वजह थी सलार देखने की एक्साइटमेंट के साथ-साथ थोड़े डर के साथ इस फिल्म को देखा और दोस्तों क्या बताऊ ये डर सही निकला क्योंकि सलार की कहानी यहां खत्म नहीं होती.

इस कहानी को पूरा होने के लिए आपको सलार के दूसरे पार्टी का इंतजार करना होगा. फिल्म के पार्ट 2 से आपत्ति नहीं है, लेकिन एक कहानी खत्म हो जाए और नई कहानी की झलक दिखाकर फिल्म खत्म हो, तो पैसा वसूल का समाधान तो मिलता है. जैसे हाल ही में अजय देवगन की भोला या शाहरुख की जवान में हमने देखा था.

‘सलार’ अगर देखनी है तो आईमैक्स थिएटर में देखें, क्योंकि ये फिल्म ऐसे ही बड़े थिएटर्स के लिए बनी है. वरना इसका म्यूजिक सिरदर्द बन सकता है. प्रभास की इस फिल्म में पृथ्वीराज की एक्टिंग आपका दिल जीत लेगी. लेकिन, उन्हें देखने के लिए फिल्म में आपको लंबा इंतजार करना पड़ेगा. कहानी नई बिल्कुल नहीं है, दो दोस्तों के बीच की कहानी हम सालों से सुनते आ रहे हैं, लेकिन कहानी को मिली ट्रीटमेंट के लिए आप ये फिल्म जरूर देख सकते हैं. अगर आप केजीएफ फ्रैंचाइजी के फैन हो, तो आपको होमब्ले फिल्म की सलार पसंद आएगी. लेकिन, सलार का वायलेंस देखने के बाद मुझे फिर एक बार ‘डंकी’ देखनी पड़ेगी.

Salaar Review: कहानी
ये कहानी शुरू होती हैं दो दोस्तों के खूबसूरत रिश्ते से. जो अपने दोस्त के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है. देवा, बचपन में ही अपने दोस्त रुद्र से बिछड़ जाता है. कहानी लीप के साथ आगे बढ़ती है जहां साल 2017 में आद्या (श्रुति हासन) अपने पिता कृष्णकांत की जानकारी के बिना न्यूयॉर्क से भारत आ जाती है. चूंकि, 7 साल पहले आद्या के पिता की गलती की वजह से उसे खानसर के लोगों से खतरा है, इसलिए उसकी सुरक्षा के लिए आद्या को देवा (प्रभास) के पास लाया जाता है. देवा के कहने पर आद्या को उनके साथ असम के एक तिनसुकिया गांव में रखा जाता है.

अब कहानी आगे बढ़ती है और देवा एक कोयला खदानों में काम करता है. उसकी मां (ईश्वरी राव) गांव में बच्चों को पढ़ाती है. अपने बेटे को लेकर देवा की मां कुछ ज्यादा ही डरी हुई सी रहती है. बेटा 6 बजे तक घर नहीं लौटे तो वो थरथराने लगती है. अपने बेटे के हाथ में प्लास्टिक का चाकू देख ले तो परेशान हो जाती है. आखिर इस डर के पीछे की वजह क्या है? ये सवाल फिल्म देखते वक्त आपके जहन में बार बार आएगा. देव और रुद्र यानी वरदराज मन्नार की दोस्ती का क्या हुआ? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर सलार देखनी होगी.

निर्देशन
फिल्म देखकर राइटर्स पर शब्द ज़ाया करने का मन नहीं करता. क्योंकि, जो कहानी सूत्रधार सुनाता है, वो सुनकर नींद आ जाती है. सलार का निर्देशन प्रशांत नील ने किया है, केजीएफ के बाद उनसे उम्मीदें कई ज्यादा बढ़ गई थी. एक्शन के साथ केजीएफ की ताकत है उसकी कहानी और मां का प्यार. एक ऐसी मां जिसने अपने जीवन में बहुत कुछ सहा है और वो चाहती है कि उसका बेटा उसकी तरह जिंदगी ना जिए. उसकी इच्छा है कि जब वो मरे तो कम से कम अमीर बनकर मरे. केजीएफ एक कहानी है जिससे हर कोई रिलेट कर पाता है.

केजीएफ का ये इमोशन सलार में मिसिंग है. फिर भी प्रशांत नील ने पूरी कोशिश की है कि वो प्रभास और पृथ्वीराज के टैलेंट को न्याय दे पाएं जिसके लिए उन्हें फुल मार्क्स मिलने चाहिए.फिल्म में किरदारों से ज्यादा सूत्रधार बोल रहा है. ज्यादातर महिला किरदार दन्त भींचकर बोलते हुए नजर आ रहे हैं, मतलब ऐसे कौन बोलता है? उनकी बॉडी लैंग्वेज कई जगह पर बहुत अजीब है. प्रभास और पृथ्वीराज को छोड़कर हर किरदार जरुरत से ज्यादा एक्टिंग करता हुआ नजर आता है.

फर्स्ट हाफ तक फिल्म फिर भी ठीक ठाक है, सेकंड हाफ में कहानी गायब हो जाती है और सिर्फ एक्शन ही नजर आता है. प्रभास और पृथ्वीराज जैसे एक्टर के साथ बेहतरीन कहानी सुनाई जा सकती थी. खैर, जिस तरह से श्रुति हासन को दिखाया गया है, वो देखकर ऐसे लगता है कि भारत में लडकियां सुरक्षित नहीं हैं. या फिर भारत में सिर्फ वो ही लडकियां सुरक्षित हैं जिन्हें दांत भींचकर बोलना आता हो.

एक्टिंग
प्रभास ने इस फिल्म को अपनी एक्टिंग से न्याय देने की पूरी कोशिश की है. एक्शन सीन में वो नेचुरल नजर आए हैं. बाहुबली के बाद साहो, राधे श्याम और अदिपुरुष में साउथ के डार्लिंग कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए. इसके बाद अब सलार में उन्होंने दिखा दिया कि अगर सही निर्देशक हो तो प्रभास कमाल कर सकते हैं. बिना कहानी की इस फिल्म को संभालने की उन्होंने पूरी कोशिश की है. पृथ्वीराज भी हमेशा की तरह शानदार दिखे हैं. पैन इंडिया ऑडियंस ने अब तक उन्हें बतौर हीरो देखा है लेकिन इस फिल्म में उनका किरदार न तो पूरा ब्लैक है न ही पूरा व्हाइट. इसके वाबजूद भी हमारी आंखें उन्हें देखने के लिए तरस जाती हैं. प्रभास के साथ तुलना की जाए तो इस मलयाली सुपरस्टार को कम स्क्रीन स्पेस मिली है. वहीं, श्रुति हासन भी सिर्फ कुछ ही समय के लिए फिल्म में हैं.

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